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बीज और मिट्टी जनित रोगों से फसल को बचाने के लिए करें बीजोपचार

 बेमेतरा | 24 जून 2020:-बीज अनेक रोगाणु जैसे-कवक, जीवाणु, विषाणु व सूत्रकृमि आदि के वाहक होते हैं, जो भंडारित बीज एवं खेत मंे बोये गये बीज को नुकसान पहंुचाते हैं। इससेे बीज की गुणवŸाा एवं अंकुरण के साथ-साथ फसल की बढ़वार, रोग से लड़ने की क्षमता, उत्पादकता एवं उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसलिये बीज भंडारण के पूर्व अथवा बोवाई के पूर्व जैविक या रासायनिक अथवा दोनों के द्वारा बीज का उपचार किया जाना चाहिए।

 कृषि विभाग एवं कृषि विज्ञान केन्द्र ढोलिया (बेमेतरा) के अधिकारियों ने बताया कि बीजोपचार विभिन्न माध्यम से किया जाता है। ’’बीजोपचार ड्रम’’ मंे बीज और दवा डालकर ढक्कन बंद करके हैंडल द्वारा ड्रम को 5 मिनट तक घुमाया जाता है। इस विधि से एक बार मंे 25-30 किलो ग्राम बीज उपचार किया जा सकता है। बीजोपचार ड्रम कृषि विभाग के माध्यम से अनुदान मंे अथवा कृषि सेवा केन्द्र से प्राप्त किया जा सकता है।

 बीज उपचार की पारम्परिक विधि ’’घड़ा विधि’’ है। इस विधि से बीज और दवा को घड़ा मंे निश्चित मात्रा मंे डालकर घड़े के मुंह को पालीथीन से बांधकर 10 मिनट तक अच्छी तरह से हिलाया जाता है। थोड़ी देर बाद घड़े का मंुह खोलकर उपचारित बीज को अलग बोरे मंे रखा जाता है। बीज उपचार की अन्य विधि ’’प्लास्टिक बोरा’’ विधि है। इस विधि मंे बीज और दवा को डालकर बोरे के मुंह को रस्सी से बांध दिया जाता है और 10 मिनट तक अच्छी तरह हिलाने के बाद जब दवा की परत बीज के ऊपर अच्छी तरह लग जाये तब बीज को भंडारित अथवा बुआई की जाती है।

बीज का उपचार रासायनिक विधि से भी किया जाता है। इस विधि मंे 10 लीटर पानी मंे कार्बेन्डाजाइम या वीटावेक्स की निर्धारित मात्रा 2 से 2.5 ग्राम प्रति लीटर की दर से घोल बनाकर गन्ना, आलू, अन्य कंद वाले फसल को 10 मिनिट तक घोल मंे डुबाकर बुआई की जाती है।

धान बीजोपचार 17 प्रतिशत नमक घोल से किया जाता है। इस विधि मंे साधारण नमक के 17 प्रतिशत घोल मंे बीज को डुबोया जाता है, जिससे बदरा, मटबदरा, कीट से प्रभावित बीज, खरपतवार के बीज ऊपर तैरने लगते है और स्वस्थ्य एवं हष्ट पुष्ट बीज नीचे बैठ जाता है, जिसे अलग कर साफ पानी से धोकर भंडारित करें अथवा सीधे खेत मंे बुआई करें। बीज जनित बीमारी जैसे उकटा, जड़गलन, आदि के उपचार के लिए जैविक फफूंदनाशी जैसे-ट्राइकोडर्मा या स्यूडोमोनास से 5 से 10 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज की दर से उपचारित करें, इससे उकटा अथवा जड़ गलन से फसल प्रभावित नहीं होती है।

बीजोपचार के लाभ -बीज एवं मृदा जनित रोग जैसे- ब्लास्ट, फाल्सस्मट (लाई फूटना) उकटा, जड़ गलन आदि बीमारी से फसल प्रभावित नहीं होती है। बीजोपचार करने से बीज के उपर एक दवाई की परत चढ़ जाती है जो बीज को बीज अथवा मृदा जनित सूक्ष्म जीवांे के नुकसान से बचाती है। बीज की अकुंरण क्षमता को बनाये रखने के लिये बीजोपचार जरूरी होता है, क्योंकि बीज उपचार करने से कीड़ांे अथवा बीमारियांे का प्रकोप भंडारित बीज मंे कम होता है। बुआई पूर्व कीटनाशी से बीज का उपचार करने पर मृदा मंे उपस्थित हानिकारक कीटों से बीज की सुरक्षा होती है। उपचारित बीज की बुआई करने से बीज की मात्रा कम लगती है एवं बीज स्वस्थ्य होने के कारण उत्पादकता एवं उत्पादन मंे वृद्धि होती है।



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