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कृषि वैज्ञानिको द्वारा पेनिकल माइट की रोकथाम हेतु किसानों को सुझाव

बेमेतरा l 07 सितम्बर 2020 धान हमारी छत्तीसगढ़ की प्रमुख फसल है। हमारी इस बहुपयोगी फसल पर कीट व रोगों के रूप में खतरा मण्डरा रहा है। अतः कृषि विज्ञान केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डाॅ. जी.पी. आयम ने कृषकों को कीट व रोगांे के संबंध में सचेत रहने के सलाह दी है। उन्होंने कृषकों को कहा है कि कृषक भाई धान की फसल में कीट व रोगों के लक्षण के आधार पर अनुशंसित मात्रा में कीटनाशकों व दवाओं को प्रयोग करें। कीट वैज्ञानिक डाॅ. एकता ताम्रकार ने बताया कि वर्तमान में धान में तनाछेदक, पत्ती मोड़क (चितरी) व पेनिकल माइट का प्रकोप देखा  जा रहा है। साथ ही झुलसा रोग व शीथगलन रोग की समस्या देखी गई है।  तनाछेदक, पत्ती मोड़क (चितरी) कीट की रोकथाम हेतु कार्टाप हाइड्रोक्लोराइड 50 प्रतिशत, एस.पी. 400-500 ग्राम प्रति एकड़ या बाइफेन्थ्रिन 10 प्रतिशत, ई.सी. 200 मि.ली. प्रति एकड़ या क्लोरेन्ट्रिनिलीप्रोल 20 प्रतिशत ई.सी. 60-70 मिली. प्रति एकड़ या फ्लूबंेडामाइड 39.35 प्रतिशत, एस.सी. 25-30 मिली. प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। पेनिकल माइट अभी नई समस्या के रूप में दिखाई दे रहा है। कृषक भाई सफेद पेनिकल या लाल या बदरंगे रंग के पेनिकल के लक्षण के आधार पर इसे आसानी से पहचान सकते हैं इसकी रोकथाम हेतु डाइकोफाल 18.5 प्रतिशत ई.सी. 1 लीटर या प्रोपारजाइट 57 प्रतिशत ई.सी. 500 मि.ली. या स्पाइरोमेसिफेन 22.9 प्रतिशत, एस.सी. 150 मिली. प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। शीथगलन रोग या झुलसा रोग के लिए ट्राइसाइक्लाजोल फफूंदनाशी 200 मिली. या टेबुकोनाजोल 300 मिली. या हेक्साकोनाजोल 200 मिली. प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।



 

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