25 मई साल 2013, यह वह तारीख है जिसे छत्तीसगढ़ में कांग्रेस अपने इतिहास का काला दिन मानती है। 9 साल पहले आज ही के दिन बस्तर के झीरम घाटी में माओवादियों ने कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हमला किया था, इस हमले में महेंद्र कर्मा, नंद कुमार पटेल, विद्याचरण शुक्ल, जैसे कांग्रेस के कई दिग्गज नेता शहीद हो गए थे।
हालांकि, इस नरसंहार में नक्सलियों की गोलियां लगने के बाद कुछ बचे भी, जिनके जख्म आज भी जिंदा हैं। उनमें से एक महेंद्र कर्मा के बेहद करीबी गंगालूर के चंद्रभान झाड़ी हैं। इस नरसंहार में चंद्रभान को गोली लगी थी, जिन्होंने अपना हाथ खो दिया है। चंद्रभान ने दैनिक भास्कर से बातचीत की। नक्सलियों के नरसंहार की आंखों देखी बताई। पढ़िए चंद्रभान की जुबानी, नरसंहार की कहानी…
25 मई को कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा थी। हम सुकमा से दरभा होते हुए जगदलपुर जा रहे थे। सामने नंदकुमार पटेल, फिर कवासी लखमा का काफिला था। इनके बाद महेंद्र कर्मा का काफिला आ रहा था। मैं भी काफिले में साथ था। इस बीच जब हम झीरम घाटी पहुंचे तो जंगल से अंधाधुंध गोलियां बरसनी शुरू हो गई थी।
संभल पाते तब तक कई लाशें बिछ चुकी थीं। हम चारों तरफ से घिर गए थे। काफिले के साथ मौजूद जवान जैसे-तैसे कर मोर्चा संभाले, लेकिन जंगल में छिपे नक्सलियों तक जवानों की गोली भी नहीं पहुंच रही थी। बुलेट प्रूफ गाड़ी से महेंद्र कर्मा, समेत कई लोग नीचे उतरकर जमीन पर लेट गए। कान के बगल से कई गोलियां निकल गईं।
सभी बेहद डरे हुए थे। कर्मा जी मेरे पास आए और कहे ‘चंद्रभान तू घबरा मत, टाइगर अभी जिंदा है’ उन्होंने हौसला बढ़ाया। फिर भी घबराहट हो रही थी। जिधर नजर पड़ रही उधर लाश दिख रही थी। महेंद्र कर्मा के साथ जो लोग थे उन्हें नीचे लेटने कह रहे थे। मैं बहुत डर गया था। गोलियों की बरसात हो रही थी। सोचा बुलेट प्रूफ गाड़ी में बैठ जाता हूं। गोली नहीं लगेगी।
गाड़ी में 2-3 जवान भी थे, जो छिपकर नक्सलियों की गोलियों का बहादुरी से जवाब दे रहे थे। मैं भी उस गाड़ी में बैठ गया। गाड़ी का एक गेट खुला रह गया था, वहीं 10 मिनट के बाद मुझे बाएं हाथ की हथेली में गोली लगी। हथेली के चिथड़े उड़ गए थे। दर्द से तड़प रहा था। फिर हिम्मत कर वापस नीचे उतर गया।
एक पेड़ के पास बैठकर शर्ट उतार कर हाथ में लपेट लिया। जब आस-पास नजर घुमाया तो देखा जिन लोगों के साथ मैं थोड़ी देर पहले जमीन पर लेटा था, उनको गोली लगी और उनकी मौत हो गई थी। महेंद्र कर्मा भी वहां नहीं थे। रेंगते हुए कुछ दूरी पर आगे बढ़ा तो देखा कई नेताओं की लाशें पड़ी हैं।
चंद्रभान ने बताया कि, मैं एक गाड़ी के नीचे जाकर छिप गया था। करीब 2 से ढाई घंटे तक सिर्फ गोलियों की और चीख-पुकार की आवाज सुनाई देती रहीं। फिर पता नहीं कब बेहोश हो गया। कुछ देर बाद जब होश में आया तो अस्पताल में था। न, इलाज के लिए हैवी डोज दी गई थी। मैं फिर बेहोश हो गया था।
पेट की चर्बी काट हथेली से जोड़ा, नहीं करता हाथ काम
गोली लगने से कलाई से नीचे हथेली के पूरी तरह चिथड़े उड़ गए थे। नसों के सहारे उंगलियां लटक रही थी। डॉक्टरों ने हथेली को सही करने पेट की चर्बी काटी और हथेली में लगाया। पेट में 27 और हथेली को जोड़ने 20 से ज्यादा टांके लगे। फिर भी अब हथेली और कोहनी से नीचे का हिस्सा काम नहीं कर रहा है। एक हाथ पूरी तरह से खराब हो गया है।
15 दिन बाद पता चला जीजा शहीद हो गए
चंद्रभान झाड़ी और महेंद्र कर्मा की राजनीतिक करीबियां तो थी ही, लेकिन महेंद्र कर्मा रिश्ते में चंद्रभान के जीजा भी थे। चंद्रभान ने बताया कि 15 दिनों तक मैं कभी होश में आता और कभी बेहोश हो जाता। ICU में था। मुझे पता नहीं था कि जीजा शहीद हो गए हैं। जब 15 दिनों के बाद दीपक कर्मा मुझसे मिलने आए तब उन्होंने मुझे बताया पापा नहीं रहे। दीपक से गले लगकर मैं फूट-फूट कर रोने लगा। उनके नहीं होने का दर्द आज भी लिए घूम रहा हूं। मेरे जख्म आज भी ताजा हैं। उस नरसंहार को कभी भूल नहीं सकता।